तू जानता भी है इस कहानी का क्या बनेगा तिरी अक़ीदत से संग-रेज़ा ख़ुदा बनेगा इसे मलूँगा तो मेरी मिट्टी चमक उठेगी ये फूल उस के लबों को छू कर दुआ बनेगा हम इतनी रग़बत से उस की आँखों को देखते हैं ख़ुदा-न-कर्दा ये शौक़ बढ़ कर नशा बनेगा तिरे बनाए हसीन चेहरों से ज़ख़्म खाते ख़ुदाया तेरे नहीफ़ बंदों का क्या बनेगा हम एक शो'ले की दस्तरस में भड़क रहे हैं अब आगे आगे हमारा दिल भी दिया बनेगा ये लम्हा जिस में हम आज छुप कर गले मिले हैं अगर मुक़द्दर नहीं मिला तो सज़ा बनेगा मैं दो क़बीलों की दुश्मनी को मिटा रहा हूँ हमारी शादी से इक नया सिलसिला बनेगा