कब बुझती है सूरज की ज़िया शाम से पहले जलता है कहाँ कोई दिया शाम से पहले इसराफ़ इसे कहिए कि दानिस्ता तग़ाफ़ुल क्यों क़ुमक़ुमा सड़कों पे जला शाम से पहले इस शहर-ए-पुर-आशोब की है रात भयानक घर लौट के आना है ज़रा शाम से पहले ये ज़ुल्मत-ए-शब ताबिश-ए-अंजुम के लिए है ये राज़-ए-निहाँ हम पे खुला शाम से पहले उम्मीद है आराम से ये रात कटेगी तस्कीन की माँगी है दुआ शाम से पहले सहरा में ग़नीमत है कड़ी धूप का साया देता है जो मंज़िल का पता शाम से पहले होती है 'जमील' ऐसी कशिश रिश्ता-ए-जाँ में लौट आते हैं अरबाब-ए-वफ़ा शाम से पहले