ताज़ीम-ए-मोहब्बत है न तकरीम-ए-वफ़ा है गुल-कारी-ए-दौराँ का फ़क़त नाम बड़ा है गुलज़ार-ए-मोहब्बत में वही फूल बना है जिस ग़ुंचा-ए-नौ-ख़ेज़ में ईसार-ओ-वफ़ा है आईना मुकद्दर हो तो धुँदलाती है तस्वीर शफ़्फ़ाफ़ निगाहों में तहारत की ज़िया है हर शख़्स यहाँ अपनी अना में है मुक़य्यद बातिल का वही ज़ो'म वही किज़्ब-ओ-रिया है हम ढूँड रहे हैं जिसे सावन की घटा में वो क़तरा-ए-सय्याल तो आँखों में छुपा है यूँ आँखों से टपके शब-ए-दीजूर में आँसू दामन भी चमकते हुए तारों से भरा है कहते हैं 'जमील' आप को अर्बाब-ए-बसीरत इक सादा सा इंसान है बातों का खरा है