कब सवा नेज़े पे सूरज आएगा क्या तिरा वा'दा धरा रह जाएगा गाँव को चट कर गई नफ़रत की आग क्यों न अब सैलाब धोखा खाएगा वो घरौंदे को समझ बैठा है घर मुझ से मिल कर बे-मकाँ हो जाएगा अब ख़ुदा का फ़ज़्ल अपने साथ है अच्छे अच्छों को पसीना आएगा बे-कसी की आँख में आँसू कहाँ ख़ून का मौसम लहू रुलवाएगा सिसकियों के कारवाँ की बात क्या उस का रिश्ता भी हवा हो जाएगा रेडियो अख़बार टी वी सब ग़लत मेरा फ़न बढ़ कर मुझे मनवाएगा फ़ासला अपना मुक़द्दर है 'क़रार' पाँव रोके से भी क्या हाथ आएगा