कब से फिरा रहा है जुनूँ कू-ब-कू हमें कर लो कभी ख़ुदा के लिए रू-ब-रू हमें बुझता हुआ चराग़ है सूरज के सामने ले आई है कहाँ पे रह-ए-आरज़ू हमें करते हैं इक सराब से बातें हम आज-कल ज़मज़म की रेगज़ार में है जुस्तुजू हमें डूबे हैं क्यों अना के समुंदर में सरगिराँ हस्ती की मुस्तआ'र मिली आबजू हमें सुब्ह-ए-अज़ल जो आप हुए हम से हम-कलाम याद आ रही है आज वही गुफ़्तुगू हमें फेंका था जो किसी की तरफ़ हम ने एक दिन पत्थर लगा है आ के वही हू-ब-हू हमें कमज़ोर हम हुए हैं कि बच्चे बड़े हुए देते हैं वो जवाब अभी दू-बदू हमें होने लगा है आज 'हिदायत' नशा हरन करने लगा है इश्क़ जो बे-आबरू हमें