कब तक खिंची लकीर पे ही चलते जाएँ हम आओ कि अब नया कोई रस्ता बनाएँ हम बातों में आ के एक सितारा-मिसाल की ख़दशा है जान-ए-मन न तुम्हें भूल जाएँ हम इतने कड़े थे कोस कि मोहलत न मिल सकी कुछ देर रास्ते में कहीं बैठ जाएँ हम मालूम है कि आने से क़ासिर है एक शख़्स क्या उस के इंतिज़ार में आँखें जलाएँ हम यूँ देखिए तो कोई बड़ी बात भी नहीं फिर तल्ख़ियों का यार सबब क्या बताएँ हम जब फ़ैसले हों नाम-ओ-नसब देख कर 'वसीम' ज़ंजीर ख़ाक अद्ल की जा कर हिलाएँ हम