ख़ैरियत उस की कुछ पता ही नहीं इन दिनों उस से राब्ता ही नहीं मसअले सिर्फ़ ज़ेर-ए-ग़ौर रहे मसअला कोई हल हुआ ही नहीं इतना पहरा है मेरी आँखों पर मैं कोई ख़्वाब देखता ही नहीं सिर्फ़ आवाज़ ही सुनी है अभी आमना-सामना हुआ ही नहीं एक आदत बहुत बुरी है मिरी मैं कोई बात भूलता ही नहीं