कभी बहुत है कभी ध्यान तेरा कुछ कम है कभी हवा है कभी आँधियों का मौसम है अभी न तोड़ा गया मुझ से क़ैद-ए-हस्ती को अभी शराब-ए-जुनूँ का नशा भी मद्धम है कि जैसे साथ तिरे ज़िंदगी गुज़रती हो तिरा ख़याल मिरे साथ ऐसे पैहम है तमाम फ़िक्र-ए-ज़मान-ओ-मकाँ से छूट गई सियाह-कारी-ए-दिल मुझ को ऐसा मरहम है मैं ख़ुद मुसाफ़िर-ए-दिल हूँ उसे न रोकुँगी वो ख़ुद ठहर न सकेगा जो क़ैदी-ए-ग़म है वो शौक़-ए-तेज़-रवी है कि देखता है जहाँ ज़मीं पे आग लगी आसमान बरहम है