कभी जुनूँ तो कभी आगही की क़ैद में हूँ मैं अपने ज़ेहन की आवारगी की क़ैद में हूँ शराब मेरे लबों को तरस रही होगी मैं रिंद तो हूँ मगर तिश्नगी की क़ैद में हूँ न कोई सम्त न जादा न मंज़िल-ए-मक़्सूद युगों युगों से यूँही बे-रुख़ी की क़ैद में हूँ किसी के रुख़ से जो पर्दा उठा दिया मैं ने सज़ा ये पाई की दीवानगी की क़ैद में हूँ ये किस ख़ता की सज़ा में हैं दोहरी ज़ंजीरें गिरफ़्त मौत की है ज़िंदगी की क़ैद में हूँ न जाने कितनी नक़ाबें उलटता जाता हूँ जन्म जन्म से मैं बेचारगी की क़ैद में हूँ यहाँ तो पर्दा-ए-सीमीं पे चल रही है फ़िल्म मैं जिस जगह हूँ वहाँ रौशनी की क़ैद में हूँ जहाँ मैं क़ैद से छूटूँ वहीं पे मिल जाना अभी न मिलना अभी ज़िंदगी की क़ैद में हूँ ग़रज़ नसीब में लिक्खी रही असीरी ही किसी की क़ैद से छूटा किसी की क़ैद में हूँ गुनाह ये है कि क्यूँ अपना नाम रखा 'नूर' वो दिन और आज का दिन तीरगी की क़ैद में हूँ