कभी कहकशाँ से गुज़र गया कभी आसमाँ से गुज़र गया तुझे कुछ ख़बर भी है बे-ख़बर मैं कहाँ कहाँ से गुज़र गया कभी भूल कर भी ज़बान पर अगर आया नाम बहार का वहीं एक शो'ला-ए-बर्क़-ए-दम मिरे आशियाँ से गुज़र गया जिसे तू ने देख कर इक नज़र कभी फिर न मुड़ के निगाह की लिए दिल में दीद की आरज़ू वही इस जहाँ से गुज़र गया न था कोई गुल जो नसीब का तो कमी थी कौन सी ख़ार की लिए मैं ग़म-ए-तही-दामनी भरे गुल्सिताँ से गुज़र गया थी अजीब इश्क़ की बे-ख़ुदी कि ज़बान हुस्न की बन गई तिरा तज़्किरा था वहाँ वहाँ मैं जहाँ जहाँ से गुज़र गया जिसे धुन हो तेरी तलाश की उसे क्या नशेब-ओ-फ़राज़ से मुझे कुछ भी इस का पता नहीं मैं कहाँ से गुज़र गया कहाँ मुझ में इतना कमाल था तिरा लुत्फ़ शामिल-ए-हाल था जो मैं झेलता हुआ सख़्तियाँ हर इक इम्तिहाँ से गुज़र गया न तो शौक़-ए-जेहद-ए-बक़ा घटा न तो शान-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ मिटी मैं तिरे हुजूम-ए-ख़याल में ग़म-ए-दो-जहाँ से गुज़र गया ये नहीं कि पास-ए-अदब न था मिरी बे-ख़ुदी का सबब ये था तिरे आस्ताँ ही की फ़िक्र में तिरे आस्ताँ से गुज़र गया नहीं जिस का आप को कुछ पता ये वही था 'नातिक़'-ए-बे-नवा ग़म-ओ-दर्द का लिए कारवाँ जो अभी यहाँ से गुज़र गया