कभी मेरा कभी तेरा रहा है ज़माना एक सा किस का रहा है ज़बान-ओ-दिल हुए हैं जब से पैदा ज़बान पर दिल का अफ़्साना रहा है उसे क्यों कर समझ लें दिल की हरकत तड़पते हैं कोई तड़पा रहा है रहे इतना ख़याल ऐ चश्म-ए-साक़ी वही पीता है जो पीता रहा है ख़ुदा जाने बहार आए तो क्या हो अभी से दिल मिरा घबरा रहा है ज़माने में हमीं इक ना-समझ हैं जिसे देखो हमें समझा रहा है लबों तक आ चुका है दम हमारा अभी तक वो मसीहा आ रहा है हम अपने आप ही को देखते हैं रहा होगा ख़ुदा जिस का रहा है मिरा घर देख कर कहने लगे वो यहाँ तो कोई दीवाना रहा है मय-ए-नौ से हो वो क्या लुत्फ़-अंदोज़ शराब-ए-कोहना जो पीता रहा है