कभी साल-हा एक पल की मिसाल कभी इक घड़ी महवर-ए-माह-ओ-साल तसव्वुर का तस्वीर से इत्तिसाल बनीं हिज्र की साअ'तें भी विसाल कभी फैल कर था जहाँ पर मुहीत कभी उन के चेहरे का तिल था ख़याल किसे मेरे वा'दे का था ए'तिबार शब-ए-हिज्र से हुस्न का था सवाल अगरचे झुका लो निगाह-ए-नियाज़ रक़ीबों की नज़रों से बचना मुहाल मोहब्बत के देखे नशेब-ओ-फ़राज़ कभी चाँद पूरा कभी था हिलाल मुक़द्दर है गोया ख़ुदा का कलाम मिला हर किसी को किए का मआल बुढ़ापे की सरहद पे दिल बे-क़रार क़ज़ा फज्र की और ब-वक़्त-ए-ज़वाल फ़लक पर है आवारा माह-ए-तमाम सियह शब में ढूँडे किसी का जमाल जुनून-ए-मोहब्बत पे कब इख़्तियार कहाँ अक़्ल की दिल के आगे मजाल हमारा 'हिदायत' अलग है मिज़ाज ख़ुशी की घड़ी में भी दिल को मलाल