कभी तुझ से ऐसा भी याराना था मुसल्ले से उठना गवारा न था यूँही इस तरफ़ हम चले आए थे किसी ने भी हम को पुकारा न था वो इक मौज थी सर उठाती हुई कहें कैसे दिल से किनारा न था चमक जिस की कल शब मज़ा दे गई कहीं आज की शब वो तारा न था बहुत ख़ुश हुए आईना देख कर यहाँ कोई सानी हमारा न था सहर हो रही थी मगर रात ने लिबास-ए-उरूसी उतारा न था