कच्ची उम्र में बूढ़ों जैसी दुनिया-दारी सीख गए By Ghazal << मोहब्बतों के हसीं पलों को... ज़माँ के रंग में दिन-रात ... >> कच्ची उम्र में बूढ़ों जैसी दुनिया-दारी सीख गए अपने दौर के बच्चों को तो बच्चों जैसा होना था Share on: