मोहब्बतों के हसीं पलों को वो तितलियों का ख़याल देगा कि ख़्वाब सारे बस एक शब में वो मेरी आँखों में ढाल देगा मैं रूठ जाऊँगी लाख उस से मुझे मना ही वो लेगा आख़िर क़रीब आ कर या मुस्कुरा कर मिज़ाज मेरा सँभाल देगा जो पल भी बीतेगा क़ुर्बतों में हसीन चंचल सी चाहतों में मुझे यक़ीं है कि मेरा दिलबर वो मेरे माज़ी को हाल देगा जो शख़्स बेचारा है आज मुझ से बहार-मौसम की इब्तिदा में कहा था उस ने कि चाहतों को कभी न रंग-ए-ज़वाल देगा कि ले के अम्बर से वो सितारे जो मेरे आँचल सजा रहा था किसे पता था कि वो ही आँचल वो मेरी अर्थी पे डाल देगा