काग़ज़ क़लम किताब से महरूम हो गए हम जीते जी जहान में मरहूम हो गए हाकिम बने तो खो गए दुनिया-ए-ऐश में साक़ी शराब जाम के महकूम हो गए मक़्तूल ही पे आ गया इल्ज़ाम-ए-ख़ुद-कुशी क़ातिल निगाह-ए-अद्ल में मासूम हो गए ग़ुर्बत में साथ छोड़ दिया तू ने भी मिरा मा'नी तिरे ख़ुलूस के मालूम हो गए किस से मिलें कि ज़ेह्न नहीं है किसी का साफ़ सारे ही लोग शहर के मस्मूम हो गए जब ज़िंदगी में दीन था ख़ुशियाँ थीं चार-सू ग़ाफ़िल हुए तो दहर में मग़्मूम हो गए मतलब-परस्त रह गए 'क़ैसर' जहान में जो पैकर-ए-ख़ुलूस थे मादूम हो गए