कहाँ कहाँ तुझे ढूँडूँ कहाँ कहाँ देखूँ दिखाई क्यों नहीं देता है मैं जहाँ देखूँ फ़ज़ा में फैल रहा है अब इंतिशार बहुत न जाने कितने ही चेहरे धुआँ धुआँ देखूँ किसी के सामने ज़ाहिर न हों मिरे हालात ख़ुदाया तुझ को फ़क़त फ़क़त अपना राज़-दाँ देखूँ ज़मीं पे फिर कहीं वहशत ने सर उभारा है लहू के रंग में फिर आज आसमाँ देखूँ ये आरज़ू कि मेरे इश्क़ को मिले मेराज नमाज़-ए-इश्क़ पढ़ूँ हिज्र-ए-बे-कराँ देखूँ बहार आएगी दिल को है अब यक़ीन मिरे ख़याल-ओ-ख़्वाब में फूलों के कारवाँ देखूँ बनी है दिल में मगर रुख़ से बात है ज़ाहिर 'सदफ़' के चेहरे को मैं दिल का आइना देखूँ