सुनते ही दिल हो गया उस यार का असरार मस्त होशियारी क्या करे जब दिल हो सौ सौ बार मस्त शोहरा-ए-आफ़ाक़ उस मह से ये है मस्तों का हाल फेंकते हैं सर से अपने ख़ाक पर दस्तार मस्त सर-बरहना बे-सर-ओ-सामाँ जो दिल-अफ़गार हैं बज़्म-ए-मस्ताँ में वही मशहूर हैं सरदार मस्त बे-ख़ुदी दीवानगी में इस तरह सरशार हैं भूलते हैं आप को हो काफ़िर ओ दीं-दार मस्त कब उन्हें दैर-ओ-हरम याद आए है ऐ ज़ाहिदो कू-ए-जानाँ में हज़ारों हो गए होश्यार मस्त कैफ़ियत दोनों जहाँ की है वहाँ हासिल तमाम जब नज़र आवें किसी जा पर कहीं दो-चार मस्त हाल आ जाए अभी सब साकिनान-ए-चर्ख़ को तू भी हो जावे ऐ 'मिस्कीं' सुन के ये अशआर मस्त