कहाँ तेवर हैं उन में अब वो कल के हवा चलने लगी है रुख़ बदल के जुदाई की घड़ी है दुश्मन-ए-दिल बला है ये नहीं टलती है टल के अदा उन की मज़ा देती है हम को मज़ा आता है उन को दिल मसल के पहेली बन के वो ओझल हुआ है किए हैं बंद दर सब उस ने जल के वफ़ा के फूल तब समझो खिलेंगे जो आएगा कोई काँटों पे चल के वो कर देते हैं ना-मुम्किन को मुमकिन मिरी आग़ोश में अक्सर मचल के नज़र के तीर नाज़ुक हैं तुम्हारे जभी पुर-लुत्फ़ हैं ये वार हल्के 'सुहैल' इस दिल की हालत और मोहब्बत बहा आँखों से वो पत्थर पिघल के