कहाँ हैं मख़्फ़ी वो शाहज़ादे जिए जो महलों की शान बन कर दिलों की बस्ती बसा न पाए गए तो उजड़ा मकान बन कर हर एक लम्हा हयात का हो चराग़-ए-हुब्ब-ए-नबी से रौशन सना-ए-रब में ही नींद आए उठो सहर की अज़ान बन कर हमारी उर्दू नबी की अरबी से मिल के शीर-ओ-शकर हुई है यहाँ की मिट्टी में ख़ाक-ए-तैबा बसी है मोमिन की जान बन कर गए कहाँ वो जिए जो हक़ पर सदा-ए-हक़ है वफ़ात में भी हुनूज़ हम सुन रहे हैं उन को गए जो हक़ का बयान बन कर वो शाख़-ए-गुल जो क़लम की सूरत बढ़ी थी आगे जड़ें जमाने पहुँच न पाई ज़मीन-ए-दिल तक अना ने रोका चटान बन कर हमारे भारत के सारे नेता अगर सियासत नबी से सीखें चमक उठेगा जहाँ में सारे ये मुल्क सच्चा महान बन कर यज़ीदियत से मुक़ाबला है हुसैनी लश्कर बनाए रक्खो रवानगी भी मिसाल की हो जियो नबी के जवान बन कर किसी ने 'मख़फ़ी' किया भरोसा विरासतों की हिफ़ाज़तों का यक़ीं में मालिक मुझे बदल दे मरूँ न झूठा गुमान बन कर