कितनी भली है दुनिया या फिर बुरी है दुनिया जैसा मिज़ाज मेरा वैसी लगी है दुनिया इस के सँवारने में हालत बिगड़ रही है जो दाइमी ठिकाना वो दूसरी है दुनिया दिल से निकालने में तकलीफ़ हो रही है किन मुद्दतों से मेरे दिल में रही है दुनिया नीची निगाह रखना दामन बचा के चलना काँटों भरी अँधेरी टेढ़ी गली है दुनिया रखता है याद रब को कब कब कहाँ कहाँ तू बस देख ले यही तू कैसी सजी है दुनिया आ'माल की ज़बाँ से जो हैं ख़ुदा के मुनकिर उन के लिए तो आख़िर सब कुछ यही है दुनिया मा'सूमियत को अपनी जिस ने जवान रक्खा उस के लिए तो यारो बूढ़ी बड़ी है दुनिया क़ुदरत की ने'मतों का इंकार क्यों करूँ मैं उक़्बा सँवारने को मुझ को मिली है दुनिया मैं जो भला हूँ 'मख़फ़ी' सारे भले लगे हैं क्यूँकर कहूँ भला मैं कितनी बुरी है दुनिया