कहाँ हवा के मुख़ालिफ़ हैं बादबान कहो कहीं मिले हैं मोहब्बत को साएबान कहो न गुल कहो न सितारा कहो न जान कहो मैं एक लम्हा हूँ मुझ को फ़क़त गुमान कहो जो सूरतें नज़र आती हैं ख़्वाब-ए-हस्ती में वो अस्ल में कभी होती हैं मेहरबान कहो मैं मुनफ़रिद तो नहीं हूँ मगर तुम्हारा ग़म पलक तक आने न दूँ मुझ को राज़दाँ कहो वो एक शख़्स कि जो हासिल-ए-मोहब्बत है उसी को वक़्त-ए-सुख़न हासिल-ए-बयान कहो जो लौह-ए-दिल पे हैं महफ़ूज़ चंद तहरीरें उन्ही हुरूफ़ में उल्फ़त की दास्तान कहो हज़ार तरह तो हम लोग आज़माए गए अब और कौन सा रहता है इम्तिहान कहो सवाद-ए-शाम में शाइ'र-मिज़ाज लोग अगर फ़सुर्दा-दिल नज़र आएँ तो शादमान कहो 'नसीम' सुब्ह-ए-तरब जब चमन में तुम आओ गुलों की ताज़ा महक को ख़ुदा की शान कहो