किसी के साथ देने का कोई इम्काँ नहीं होता वसी-उल-क़ल्ब होना इस क़दर आसाँ नहीं होता बिछड़ते वक़्त इक आँसू पस-ए-मिज़्गाँ नहीं होता मगर ये हौसला इस दर्द का दरमाँ नहीं होता जुदाई का तअस्सुर मुझ पे कुछ है आप पर कुछ है असर हर बात का हर शख़्स पर यकसाँ नहीं होता मिरा दिल अपने ही एहसास की शिद्दत गँवा बैठा तुम्हारी बात का अफ़्सोस अब चंदाँ नहीं होता तज़ाद अपनी तबीअत का मिज़ाज उस की मोहब्बत का हर अंदेशा ब-वज्ह-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नहीं होता समुंदर की तहें और आसमाँ की सब हदें छू लें मगर इंसाँ को अपनी ज़ात का इरफ़ाँ नहीं होता 'नसीम' अपने लिए तुम ने दुआ भी तर्क कर डाली तो क्या अब ख़ुद से मिलने का तुम्हें अरमाँ नहीं होता