कहाँ खोई थी तिरी राहगुज़र लिक्खी है दिल के औराक़ पे रूदाद-ए-सफ़र लिक्खी है किसी गोशे में धरी अब भी है अलमारी में तेरे बारे में वो इक चिट्ठी जो घर लिक्खी है रात भर कुर्ते के घेरे पे गिरा ख़ून-ए-जिगर दास्ताँ फिर से तिरी दीदा-ए-तर लिक्खी है चाँदनी धोका तो चेहरा है फ़क़त हुस्न-ए-नज़र लुग़त-ए-दर्द में तक़दीर-ए-क़मर लिक्खी है हम क़नाअत के भिकारी हैं तवक्कुल के फ़क़ीर है बहुत तेरे करम की जो नज़र लिक्खी है