कहाँ सबात का उस को ख़याल होता है ज़माना माज़ी ही होने को हाल होता है फ़रोग़-ए-बद्र न बाक़ी रहा न बुत का शबाब ज़वाल ही के लिए हर कमाल होता है मैं चाहता हूँ कि बस एक ही ख़याल रहे मगर ख़याल से पैदा ख़याल होता है बहुत पसंद है मुझ को ख़मोशी-ओ-‘उज़लत दिल अपना होता है अपना ख़याल होता है वो तोड़ते हैं तो कलियाँ शगुफ़्ता होती हैं वो रौंदते हैं तो सब्ज़ा निहाल होता है सोसाइटी से अलग हो तो ज़िंदगी दुश्वार अगर मिलो तो नतीजा मलाल होता है पसंद-ए-चश्म का हरगिज़ कुछ ए'तिबार नहीं बस इक करिश्मा-ए-वहम-ओ-ख़याल होता है