कहाँ थी इतनी मजाल बंदा ज़रूर वो कोई और होगा तुम्हारा शिकवा मिरी ज़बाँ पर हुज़ूर वो कोई और होगा तुम्हारी दानिश्वरी के सदक़े कि बात मज्ज़ूब की न समझे जो रम्ज़-ए-इरफ़ाँ से आश्ना हो शुऊ'र वो कोई और होगा मुझे तो कुछ ग़म नहीं है वाइज़ कि मैं तो मस्त-ए-मय-ए-अज़ल हूँ शराब-ए-कौसर तुम्हें मुबारक सुरूर वो कोई और होगा तुम्हारे दीदार की बदौलत हर एक लहज़ा हमें क़यामत ये दिल तो बेताब है अज़ल से सुबूर वो कोई और होगा बपा है इक हश्र दिल में पैहम नहीं है महशर का हम को कुछ ग़म ये माना यौम-उन-नुशूर होगा नुशूर वो कोई और होगा