किस वास्ते गिला करें उन का किसी से हम रूठी है हम से ज़िंदगी और ज़िंदगी से हम हम हैं वफ़ा-शिआ'र ज़माने तू देख ले दुनिया-ए-दिल लुटाते हैं हम अपनी ख़ुशी से हम इस बे-रुख़ी का तेरी कहीं खुल न जाए राज़ यूँ दोस्ती किए हैं तेरी दुश्मनी से हम हद रूठने की हो चुकी अब मान जाओ तुम घबरा के रो ना दें कहीं इस दिल-लगी से हम उस आस्ताँ पे सज्दे की लज़्ज़त को क्या कहें अब तो न बाज़ आएँगे इस बंदगी से हम 'साक़िब' जब उन पे जान मोहब्बत में की निसार तब लज़्ज़त-आश्ना हुए इस आशिक़ी से हम