कहें किस से सुनाएँ किस को अब दर्द-ए-निहाँ अपना उसी ने राज़ खोला जो बना था राज़-दाँ अपना समझ बैठे जुनून-ए-शौक़ में सारा जहाँ अपना न रास आया जहाँ हम ने बनाया आशियाँ अपना सफ़र कैसा रहा मंज़िल थी कैसी अब ये मत पूछो वो साअ'त नहस थी जिस वक़्त निकला कारवाँ अपना मुअज़्ज़िज़ ग़ैर जिस हुस्न-ए-बयाँ ज़ोर-ए-बयाँ पर है हमीं थे लाएक़-ए-ताज़ीर गर होता बयाँ अपना फ़रेब-ए-बारहा पर है वही हुस्न-ए-गुमाँ उन से किसे मालूम अब क्या गुल खिलाएगा गुमाँ अपना इन अहल-ए-ज़ौक़ का मत पूछो अंजाम-ए-सफ़र क्या हो न समझा जिन का ख़ुद ज़ौक़-ए-सफ़र सूद-ओ-ज़ियाँ अपना तलाश-ए-नारवा में अब अगर अहल-ए-तलब भटके नहीं दिन दूर जब खो बैठेंगे नाम-ओ-निशाँ अपना नशेमन छिन गया हम पर-बुरीदा इस लिए चुप हैं 'ज़ुबैर' अब जुज़ क़फ़स कोई ठिकाना ही कहाँ अपना