याद से जिस की दिल शाद-ओ-सरशार है और फ़ज़ा जिस से गुलनार-ओ-गुलज़ार है हर-नफ़स बन गया जिस की गुफ़्तार है वो हमारी कहानी का शह-कार है एक अफ़्सुर्दगी ज़ीस्त पर छा गई और दुनिया इधर की उधर हो गई बात क्या है क्यों ऐसा हुआ यक-ब-यक ये बताना भी अब अम्र-ए-दुश्वार है कोई ये कह गया रौ में या वाक़ई बात दिल की ज़बाँ से निकल ही गई गरचे लुक्नत थी जब ये किसी ने कहा प्या प्या प्या प्यार तुम से मुझे प्यार है आप-बीती है अपनी ग़लत कुछ नहीं जानते हैं सभी हम पे गुज़री जो कुछ वो हैं मौजूद देखा जिन्हों ने मगर मानने को नहीं कोई तय्यार है जिस पे जाँ देते थे एक मुख़्बिर था वो और पर्वर्दा-ए-दुश्मन-ए-जाँ था वो हम ने ताज़ा ख़बर जिस में ये है पढ़ी आज ही का तो वो एक अख़बार है आज तन्हा सही कोई पुरसाँ नहीं ज़ीस्त ऐसी हमेशा नहीं थी 'ज़ुबैर' क़िस्सा-ए-ग़म सुना शौक़ से जिस ने था अब नहीं सुनने को वो रवादार है