कहीं मिला न कोई हम-नवा सलीक़े से अगरचे देता रहा मैं सदा सलीक़े से मिली है दाद मुझे अपनी सख़्त-जानी की गुज़र गया है हर इक हादिसा सलीक़े से दुआएँ देता हूँ अब तक मैं उन के जल्वों को जिन्हों ने आँखों को बख़्शी सज़ा सलीक़े से ब-वक़्त-ए-नज़्अ' तबस्सुम था मेरे होंटों पर यूँ मेरे सामने आई क़ज़ा सलीक़े से लगा कि अब भी जहाँ में ख़ुलूस ज़िंदा है मिला कभी जो कोई आश्ना सलीक़े से वही है हब्स वही है इताब-ए-तिश्ना-लबी चली न आज भी बाद-ए-सबा सलीक़े से मुझे शुऊ'र है ऐ 'शान' ख़ुद-कलामी का गुज़र रही है शब-ए-माजरा सलीक़े से