ख़ुदा ही जाने ये कार-ए-सवाब कैसे हुआ वो अपनी ज़ात में शो'ला था आब कैसे हुआ तुम्हारे घर से ही मंसूब था पता जिस का तुम्हीं बताओ वो ख़ाना-ख़राब कैसे हुआ हर एक काम था उस का सवाब में दाख़िल फिर ऐसे बंदे पे नाज़िल अज़ाब कैसे हुआ जवाब इस का अँधेरों से पूछना होगा जो कल था ज़र्द वो आज आफ़्ताब कैसे हुआ नुमू का दख़्ल था उस में कि ख़ुद-नुमाई का वो मिल के ख़ाक में आख़िर गुलाब कैसे हुआ जनाब-ए-'शान' ये ज़र्रा-नवाज़ी किस की है जो बे-ज़बाँ था वो अहल-ए-किताब कैसे हुआ