कहीं पर शादमानी है कहीं पर नौहा-ख़्वानी है जो सच पूछो हक़ीक़त में यही तो ज़िंदगानी है जो सूरज आसमानी है उसी से ज़िंदगानी है वो जब तक ग़ैर-फ़ानी है तो हर शय जावेदानी है जिसे तुम रूह कहते हो उसे दिल भी तो कहते हैं वही है आत्मा सब की अज़ल से जावेदानी है किसी से दुश्मनी तेरी किसी से दोस्ती तेरी किसी से बे-रुख़ी है तो किसी से ख़ुश-बयानी है नहीं हाकिम को कुछ परवा कि है महकूम किस ग़म में है हाहा-कार हरसू हर तरफ़ छाई गिरानी है अनोखा है तरीक़ा वा'ज़ का तेरे भी ऐ वाइज़ किसी से तू है आज़ुर्दा किसी पर मेहरबानी है दर-ए-महबूब से आया है ख़ाली नामा-बर अपना न है तहरीर ही में कुछ न पैग़ाम-ए-ज़बानी है यहाँ फ़ानी है हर इक शय फ़ना सब का मुक़द्दर है हक़ीक़त में उसी की ज़ात 'कुंदन' जावेदानी है