कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं तिरे ख़याल की ख़ुशबू भी आस-पास नहीं हज़ार बार निगाहों से चूम कर देखा लबों पे उस के वो पहली सी अब मिठास नहीं सजा के बोतलें टेबल पे मुंतज़िर हों मगर क़रीब ओ दूर निगाहों के वो गिलास नहीं समुंदरों का ये नमकीन पानी कैसे पियूँ पियासा हूँ मगर इतनी ज़ियादा प्यास नहीं ये और बात कि मुझ से बिछड़ के ख़ुश है मगर वो कैसे कह दे कि मैं इन दिनों उदास नहीं तुम्हारे कपड़े कहीं गर्द में न अट जाएँ ये ख़ुश्क पत्तों का बिस्तर है सब्ज़ घास नहीं बुझी बुझी सही ये धूप कम नहीं 'असलम' अब इस के ब'अद किसी रौशनी की आस नहीं