मय-कदों में तो आम पीते हैं हम निगाहों से जाम पीते हैं तेरी तस्वीर सामने रख कर कर के तुझ से कलाम पीते हैं ग़म-ए-फ़ुर्क़त में बस दो घूँट पिया आप करते हैं नाम पीते हैं आओ पी लो के सुब्ह-ए-सादिक़ है आओ बैठो है शाम पीते हैं मैं ज़माने को मय-कदे सा लगूँ आओ इस तरह जाम पीते हैं क़ैद बोतल में हैं अजब जल्वा आज बोतल तमाम पीते हैं घिर के आईं घटाएँ सावन की कीजे कुछ इंतिज़ाम पीते हैं