कैसा जादू कैसा फ़ित्ना ध्यान में रक्खा गया दिल में क्या आया कि दिल इंसान में रक्खा गया बावजूद इस के कि कुछ ले कर नहीं जाऊँगा मैं जाने क्या क्या कुछ मिरे सामान में रखा गया सो सराबों का भरम रखने की ख़ातिर यूँ हुआ एक नख़लिस्तान रेगिस्तान में रक्खा गया रात-भर जब रोया पंछी काली छत को देख कर एक नीला आसमाँ ज़िंदान में रक्खा गया ख़ाली कमरे और भी छोटे नज़र आने लगे जैसे ही हर चीज़ को दालान में रक्खा गया जो नहीं था काम का वो घर में ही रखना पड़ा काम के सामान को दूकान में रक्खा गया नाम सुनते ही किसी का मुस्कुरा देता था वो ज़िक्र मेरा भी उसी मुस्कान में रक्खा गया फ़ाएदा होते ही चल देता मैं ऐसा था नहीं फिर भी जाने क्यों मुझे नुक़्सान में रक्खा गया उस से थी उम्मीद सोचेगा मिरे बारे में भी सो उसी की शर्तों को पैमान में रक्खा गया