कैसे कह दूँ मुझ को तन्हाई में याद आता है कौन राज़ की ये बात है और राज़ बतलाता है कौन रोने वाले क्या तिरे दिल में भी है मेरा सा ग़म यूँ किसी के ग़म को सुन कर अश्क भर लाता है कौन हुस्न है मग़रूर तो ये अहल-ए-दिल की है ख़ता इक झलक में हुस्न का दीवाना बन जाता है कौन दूसरों को कहने वाला आदमी है ख़ुद बुरा लेकिन अपने ज़र्फ़ को आईना दिखलाता है कौन कौन चश्म-ए-हुस्न से पीना न चाहे है शराब इश्क़ माना है मुसीबत फिर भी घबराता है कौन शैख़ साहिब हैं कि कोई ग़म-ज़दा ये शब ढले देखना साक़ी दर-ए-मय-ख़ाना खटकाता है कौन लूट ली जिस ने 'ज़फ़र' की ज़िंदगी की हर ख़ुशी कौन है वो बेवफ़ा ये बात बतलाता है कौन