कैसी फ़रहत दिलों पे छाई है आप आए बहार आई है हर-नफ़स पर चराग़ है रौशन मैं ने घर में मुराद पाई है तेरे होते और ऐसी मजबूरी मेरे अल्लह तेरी दुहाई है नग़्मा-हा-ए-दिल-ए-शिकस्ता पर आदमियत भी थरथराई है कहीं मरता है आप का बंदा दुश्मनों ने ख़बर उड़ाई है चूम लूँ क्यों न अपनी सूरत को किस के हाथों ने ये बनाई है दम-ए-आख़िर 'क़दीर' वो आए क्या ख़िज़ाँ में बहार आई है