कैसी महक कहाँ का कोई फूल बाग़ में बस रंग-ए-बेवफ़ाई है मक़्बूल बाग़ में आँखों पे हाथ रख के निकलना पड़ा मुझे इक याद ने उड़ाई बहुत धूल बाग़ में तितली को ढलते देखना जुगनू के रूप में मेरा यही है रोज़ का मा'मूल बाग़ में जाने वो हुस्न था कि हवस थी निगाह में हर चेहरा लग रहा था मुझे फूल बाग़ में 'आसिम' रिसाला-हा-ए-गुल-ओ-बर्ग-ओ-बार देख क़ुदरत ने खोल रक्खा है इस्कूल बाग़ में