मोहब्बत का इसे आज़ार भी है मोहब्बत से ये दिल बेज़ार भी है खटकती है ज़माने की नज़र में मोहब्बत फूल तो है ख़ार भी है बरहमन से न कर ऐ शैख़ नफ़रत तिरी तस्बीह में ज़ुन्नार भी है मुरक्कब है ये इंसाँ ख़ैर-ओ-शर से बशर में नूर भी है नार भी है वो दीवाने को दीवाना न समझें जो दीवाना है वो हुशियार भी है दिल-ए-इंसाँ में ज़ुल्मत भी है माना मगर ये मरकज़-ए-अनवार भी है सुने हैं हम ने भी अशआ'र-ए-'ज़ाकिर' फ़साहत भी है और मेआ'र भी है