कल यूँही तेरा तज़्किरा निकला फिर तो बातों का सिलसिला निकला ग़म ही तक़दीर का लिखा निकला जिस को चाहा वो बेवफ़ा निकला इश्क़ में भी सियासतें देखीं क़ुर्बतों में भी फ़ासला निकला अपना चेहरा ही मो'तबर पाया झूटा हर एक आइना निकला ग़म-ए-दौराँ का तज्ज़िया जो किया तेरा मेरा मोआमला निकला आ गई दरमियान जब दुनिया फिर न कोई भी रास्ता निकला सारे आज़ार हैं 'मतीन' वही शहर भी दश्त-ए-कर्बला निकला