मुहीब रात के गुंजान पानियों से निकल नई सहर के सितारे तू चिमनियों से निकल हर एक हद से परे अपना बोरिया ले जा बदी का नाम न ले और नेकियों से निकल ऐ मेरे मेहर तू उस की छतों पे आख़िर हो ऐ मेरे माह तू आज उस की खिड़कियों से निकल निकल के देख तिरी मुंतज़िर क़तार क़तार अज़ीज़ दाना-ए-गंदुम तू बोरियों से निकल तू मेरी नज़्म के असरार में हुवैदा हो तू मेरे कश्फ़ की नादीदा घाटियों से निकल ऐ पिछली उम्र इधर सूखी पत्तियों में आ ऐ अगले साल बुझी मोम-बत्तियों से निकल