कनार-ए-आब है अब्र-ए-बहार है साक़ी शराब ला कि फ़ज़ा बे-क़रार है साक़ी हवाएँ मय-कदा-बर-दोश फूल जाम-ब-कफ़ बहार आज मुकम्मल बहार है साक़ी पिला दे आज ही कल के लिए जो रख दी है कि ज़िंदगी का किसे ए'तिबार है साक़ी फ़ज़ा भी मस्त है गुलशन भी मस्त है लेकिन नियाज़-मंद अभी होशियार है साक़ी रहूँ मैं होश में जब तक पिलाए जा मुझ को फिर इस के बाद तुझे इख़्तियार है साक़ी निसार लाला-ओ-गुल की जवानियाँ तुझ पर तिरे 'सहर' को तिरा इंतिज़ार है साक़ी