वफ़ा को तर्क करूँ ये मिरा शिआ'र नहीं न हो बला से किसी को जो ए'तिबार नहीं मिरे सुकून की दुनिया उजाड़ने वाले बता कि और तुझे कोई इख़्तियार नहीं निगाह उठते ही मायूसियों में डूब गई तिरे न होने से रंगीनी-ए-बहार नहीं मोहब्बत और ज़माने का जब्र अरे तौबा कि उन से अर्ज़-ए-मोहब्बत का इख़्तियार नहीं नशात में भी झलकता है रंग-ए-नाकामी क़रार में भी कोई सूरत-ए-क़रार नहीं