बा'द तुम्हारे कोई हमदम क्या होगा मरहम के मारों का मरहम क्या होगा मुमकिन है ये मुझ को पागल भी कर दे इश्क़ का ग़म है इस से तो कम क्या होगा मुफ़्लिस क्या हैं चलते फिरते मुर्दे हैं मुर्दों के मरने का मातम क्या होगा ठंडी आहें ख़्वाब सुलगते नम आँखें इस से बढ़ कर रंगीं मौसम क्या होगा दोनो ही के अपने अपने रस्ते हैं सहरा से दरिया का संगम क्या होगा