कार-ए-हस्ती ख़ार-ओ-गुल के दरमियाँ बनता गया बिजलियाँ गिरती गईं और आशियाँ बनता गया अश्क-ए-ख़ूँ बहने का चेहरे पर निशाँ बनता गया मैं मुजस्सम दर्द-ओ-ग़म की दास्ताँ बनता गया आह-ओ-गिर्या ना-मुनासिब ज़ब्त फ़ितरत के ख़िलाफ़ दर्द मेरे वास्ते इक इम्तिहाँ बनता गया हर क़दम उभरा किए नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-जमाल गुल पे गुल खिलते गए और गुल्सिताँ बनता गया वक़्त ने गुलचीं के हाथों क़िस्मत-ए-गुल सौंप दी या'नी हर बाग़ी चमन का बाग़बाँ बनता गया सच तो ये है इन्क़िलाबात-ए-ज़माना के तुफ़ैल एक एक रहज़न अमीर-ए-कारवाँ बनता गया सब मुझे कहते हैं ख़ोशा-चीन-ए-गुलज़ार-ए-'ज़बीह' 'नूर' उन्हीं के फ़ैज़ से रंगीं-बयाँ बनता गया