कर गया गोशा-नशीनों पे ये एहसाँ कोई दे गया मश्ग़ला-ए-चाक-गरेबाँ कोई है यही शौक़ की पस्ती-ओ-बुलंदी का मिज़ाज फ़र्श की गर्द कोई अर्श का मेहमाँ कोई ज़ोफ़-ओ-हिम्मत के करिश्मे हैं चे मुमकिन चे मुहाल काम मुश्किल है कोई और न आसाँ कोई आज वो दिन है कि रौशन है शबिस्तान-ए-ख़याल रोक दे बढ़ के ज़रा गर्दिश-ए-दौराँ कोई ज़ुल्फ़-ओ-काकुल का फ़साना हो किसी तरह दराज़ इस ख़म-ओ-पेच में है सिलसिला-जुम्बाँ कोई और भी ज़ख़्म हैं ऐ चाक-ए-गरेबान-ए-जुनूँ तू हँसे या न हँसे होगा नुमायाँ कोई ऐसे सहरा में जहाँ नख़्ल का साया भी न था बढ़ गया छोड़ के तन्हा हमें 'एहसाँ' कोई