कर के दिल-ए-नालाँ से मिरे साज़ किसी ने दी है मुझे पर्दे से ये आवाज़ किसी ने इस दिल का है जो दर्द वही जान है दिल की समझा न कभी इश्क़ का ये राज़ किसी ने वा बाब-ए-क़फ़स और हूँ मैं बाब-ए-क़फ़स पर जैसे कि उड़ा ली पर-ए-पर्वाज़ किसी ने तक़दीर में जो कुछ मिरी हँसना है कि रोना बख़्शा वही दिल को मिरे अंदाज़ किसी ने हर अश्क का क़तरा था फ़साना मिरे दिल का देखा न मिरा दीदा-ए-ग़म्माज़ किसी ने दी मुझ को तड़प वो भी ब-क़द्र-ए-दिल-ए-बेताब मैं क्या कि ये समझा न तिरा राज़ किसी ने हर शेर है डूबा हुआ तासीर में 'कैफ़ी' बख़्शा है मुझे ख़ामा-ए-ए'जाज़ किसी ने