कर के उल्फ़त यार से पछताएँ क्या गर्दिश-ए-तक़दीर से घबराएँ क्या जब नहीं क़दर-ए-ख़ुलूस-ए-अहल-ए-दिल नज़्र करने के लिए फिर लाएँ क्या जो गुज़रती है गुज़र जाने भी दो चारागर को हाल-ए-दिल बतलाएँ क्या देख कर बे-साज़-ओ-सामानी मिरी कह रहे हैं तेरे घर हम आएँ क्या सुन के लर्ज़ां थे ज़मीन-ओ-आसमाँ दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल दोहराएँ क्या जब नहीं मिलता किसी पहलू क़रार दिल को ले जा कर कहीं बहलाएँ क्या हुस्न रुस्वा हो न ऐ 'असलम' कहीं राज़दाँ को राज़-ए-दिल बतलाएँ क्या