कर रहा है क़ियाम आँखों में एक चेहरा तमाम आँखों में अपनी आँखों पे कुछ नज़र रखिए लोग हैं बे-लगाम आँखों में टूटे ख़्वाबों कि किर्चियों के सिवा ख़ास क्या होगा आम आँखों में दिन के ढलते ही आ गया है नज़र शाम का इंतिज़ाम आँखों में भर दिया है नई बग़ावत को मैं ने सारी ग़ुलाम आँखों में पढ़ रहा हूँ मैं आज भी 'हर्षित' उस के दिल का कलाम आँखों में