ख़त्म कर देती है ख़ुद ही फ़ासला मेरे लिए उस की ख़ुशबू ले के आती है हवा मेरे लिए मैं ने जिस जिस का दुखाया दिल वो सब जाते रहे अब नदामत लफ़्ज़ का मतलब भी क्या मेरे लिए कोई अब भी दिल के मंदिर में जलाता है दिए कोई तो करता है अब भी रतजगा मेरे लिए हाथ के छालों ने कर ली आज फिर से ख़ुद-कुशी मेरे बच्चों ने कहा जब क्या किया मेरे लिए अपनी उल्फ़त के हज़ारों रंग भर दूँगा जनाब जब कोई तस्वीर भेजेगा ख़ुदा मेरे लिए किस लिए दुनिया में रहने आ गए जन्नत से हम कोई तो बन जाए अब उक़्दा-कुशा मेरे लिए अज़्म-ए-मोहकम देख कर इस ज़िंदगी की राह में मंज़िलें ख़ुद तय करेंगी रास्ता मेरे लिए मैं ने छोड़ी ही नहीं अब तक अमल की रस्सियाँ जो भी है अच्छा है सब उस का लिखा मेरे लिए